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RATH YATRA: जगन्नाथ रथ यात्रा की ये 10 बातें, आपको जरूर पता होनी चाहिए
Spiritual / 2023/06/20

जगन्नाथ रथ यात्रा की ये 10 बातें, आपको जरूर पता होनी चाहिए

जगन्नाथ रथ यात्रा, जिसे रथ महोत्सव के रूप में भी जाना जाता है यह भगवान जगन्नाथ से जुड़ा एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह अवसर आषाढ़ महीने के दूसरे दिन आता है। उड़ीसा में स्थित पुरी में गुंडिचा मंदिर में रथ महोत्सव मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि रथ यात्रा के दिन, भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहनों के साथ उनके रथों पर मंदिर जाते हैं। इस अवसर पर, तीन देवताओं- भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा की मंदिर में पूजा की जाती है। रथ के शुभ दिन पर, यात्रा भक्त तीनों देवताओं के दिव्य रथ खींचते हैं। तीन देवताओं की मूर्तियों को लकड़ी से तराशा जाता है और हर 12 साल में एक बार बदल दिया जाता है। रथ यात्रा भाइयों के बीच एकीकरण और समानता का प्रतीक है। रथों को नई लकड़ी से तराशा जाता है और हर साल बदल दिया जाता है। रथ यात्रा की भव्यता पूरे 12 दिनों तक कई रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है।

जगन्नाथ पूरी रथ यात्रा की 10 विशेषताएँ।

1. पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। इसे उनके रंग और ऊंचाई से पहचाना जाता है।
 
2.बलरामजी के रथ को 'तालध्वज' कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ को 'दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है, जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ' नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं। इसका रंग लाल और पीला होता है।

Adertisement
3. भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा, बलरामजी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है। 

4.सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाए जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं। इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है।

5.इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है। रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है।


6. जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब 'छर पहनरा' नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है। इसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं और ‘सोने की झाड़ू’ से रथ मण्डप और रास्ते को साफ़ करते हैं।
 
7. आषाढ़ माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को रथयात्रा आरम्भ होती है। ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं। कहते हैं, जिन्हें रथ को खींचने का अवसर प्राप्त होता है, वह महाभाग्यवान माना जाता है। 
 
8. जगन्नाथ मंदिर से रथयात्रा शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए ये रथ गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। यहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प-दर्शन’ कहा जाता है।
 
9.  गुंडीचा मंदिर को 'गुंडीचा बाड़ी' भी कहते हैं। यह भगवान की मौसी का घर है। इस मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।
 
10. आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।

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