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दस दिग्पालों की शक्ति का अनुभव करें: अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए टिप्स
Spiritual / 2024/02/05

दस दिशाओं का रहस्य: दस दिग्पालों की शक्ति और पौराणिक कथाएं

दस दिशाओं के दस दिग्पाल
हिंदू धर्म में दस दिशाओं और उनसे जुड़े दस देवताओं का उल्लेख मिलता है। इन देवताओं को दिग्पाल कहा जाता है। दस दिशाएं और उनके दिग्पाल निम्नलिखित हैं:

उर्ध्व = ब्रह्मा

ईशान = शिव

पूर्व = इंद्र

आग्नेय = अग्नि

दक्षिण = यम

नैऋत्य = नऋति

पश्चिम = वरुण

वायव्य = वायु

उत्तर = कुबेर

अधो = अनंत

दिग्पालों का महत्व

दिग्पालों को दिशाओं का रक्षक माना जाता है। वे दिशाओं में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बनाए रखते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं।

1. पूर्व: जो हमें जीवन देते हैं वो भगवान सूर्यनारायण पूर्व दिशा से ही निकलते हैं। इसी कारण इसका महत्त्व बहुत अधिक है। पूर्व और ईशान दिशा का भी सम्बन्ध होता है। जब सूर्य उत्तरायण में होता है तो वो पूर्व नहीं बल्कि ईशान दिशा से ही निकलता है। ये समय अत्यंत ही शुभ माना जाता है। यही कारण है कि शरशैया पर होने के बाद भी पितामह भीष्म अपने शरीर को त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे। इस दिशा के दिक्पाल इंद्र और स्वामी सूर्य हैं। ये दिशा पितृस्थान भी माना जाता है। वास्तु के अनुसार पूर्व दिशा खुला-खुला होना चाहिए। अगर उस स्थान पर खिड़की हो जिससे सूर्योदय को देखा जा सके तो उससे अच्छा कुछ नहीं। पूर्व की ओर मुख्यद्वार होना भी बहुत शुभ माना जाता है। इस दिशा में बुजुर्गों का कमरा नहीं होना चाहिए और ना ही यहाँ सीढियाँ नहीं बनानी चाहिए।
  • दिशा: पूर्वा
  • दिक्पाल: इंद्र
  • मंत्र: ॐ लं इन्द्राय नमः
  • अस्त्र: वज्र
  • पत्नी: शची
  • ग्रह: सूर्य
  • देवी: सूर्या

2. आग्नेय: दक्षिण और पूर्व दिशा जहां मिलती हैं उसे आग्नेय कोण कहते हैं। देव अग्नि इस दिशा के दिक्पाल हैं और शुक्र ग्रह इसके स्वामी हैं। वास्तु के अनुसार अगर आपके घर में रसोई आग्नेय कोण में हो तो वो सर्वोत्तम है। इससे घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। अपने घर के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी आप इस कोण में रख सकते हैं। इस दिशा में आपके सोने का कमरा या बच्चों की पढाई का स्थान नहीं होना चाहिए। घर का मुख्यद्वार भी कभी इस दिशा में ना बनायें। ऐसा करने से घर में कलह बढ़ता है सदस्यों को स्वस्थ सम्बन्धी समस्याएं भी होती हैं।
  • दिशा: आग्नेयी
  • दिक्पाल: अग्नि
  • मंत्र: ॐ अं अग्नेयाय नमः
  • अस्त्र: दंड
  • पत्नी: स्वाहा
  • ग्रह: शुक्र
  • देवी: शुक्रा

3. दक्षिण: इस दिशा के दिक्पाल सूर्यपुत्र यम हैं और इसके स्वामी मंगल ग्रह है। ये दिशा बहुत पवित्र मानी जाती है और अगर वास्तु के अनुसार इस दिशा का निर्माण किया जाये तो परिवार में सुख और सम्पन्नता बढ़ती है और मनुष्य प्रसिद्धि और समृद्धि प्राप्त करता है। इस दिशा में घर का मुख्य द्वार नहीं होना चाहिए और कोई भी भारी सामान इसी दिशा में रखना चाहिए। ये स्थान कभी खाली भी नहीं छोड़ना चाहिए। वास्तु अनुसार इस दिशा को सुसज्जित रखने से यम और मंगल दोनों प्रसन्न होते हैं और मनुष्य की कभी अकालमृत्यु नहीं होती।
  • दिशा: दक्षिणा
  • दिक्पाल: यम
  • मंत्र: ॐ मं यमाय नमः
  • अस्त्र: पाश
  • पत्नी: धूमोर्णा
  • ग्रह: मंगल
  • देवी: मंगला

4. नैऋत्य: दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य के स्थान को नैऋत्य कहा गया है। यह दिशा सूर्यदेव के आधिपत्य में है और इस दिशा के स्वामी राहु हैं। शिवानी देवी इस दिशा की अधिष्ठात्री हैं। इस दिशा में पृथ्वी तत्व प्रमुख रूप से विद्यमान रहता है इसी कारण घर की भारी वस्तुएं इस दिशा में रखनी जाहिए। इस दिशा में जल तत्व को रखने की मनाही है। अर्थात इस दिशा में कुआं, बोरिंग, गड्ढे इत्यादि नहीं होना चाहिए। सूर्यदेव के संरक्षण में होने के कारण इस दिशा को वास्तु के अनुसार सही रखने पर जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
  • दिशा: नैऋती
  • दिक्पाल: सूर्य
  • मंत्र: ॐ सं सूर्याय नमः
  • अस्त्र: दंड
  • पत्नी: छाया
  • ग्रह: राहु
  • देवी: शिवानी

5. पश्चिम: ये दिशा पूर्व दिशा की विरोधाभासी दिशा है। जहां भगवान सूर्यनारायण पूर्व से प्रकट होते हैं, वही पश्चिम में अस्त होते हैं। ये दिशा वरुणदेव के संरक्षण में है और शनिदेव इस दिशा के स्वामी है। ये दिशा प्रसिद्धि, भाग्य और ख्याति की प्रतीक है। इस दिशा को वास्तु के अनुसार अनुकूल रखने पर मनुष्य पर शनि की कुदृष्टि नहीं पड़ती है। वास्तु के अनुसार इस दिशा में घर का मुख्‍य द्वार होना चाहिए। साथ ही वो द्वार सदैव स्वच्छ रखना चाहिए। अगर द्वार में किसी प्रकार की दरार हो तो उसे तुरंत बदल दें। मुख्य द्वार पर किसी भी प्रकार के रंग का उपयोग किया जा सकता है किन्तु गहरा रंग विशेष फल देता है। इस दिशा में मुख्य शयनकक्ष, शौच इत्यादि नहीं होना चाहिए। ये स्थान ना ज्यादा खुला हो और ना ही पूरी तरह बंद।
  • दिशा: पश्चिमा
  • दिक्पाल: वरुण
  • मंत्र: ॐ वं वरुणाय नमः
  • अस्त्र: पाश
  • पत्नी: वारुणी
  • ग्रह: शनि
  • देवी: शनिनी

6. वायव्य: वायुदेव के अधिकार वाली ये दिशा आपके पारिवारिक और मित्रता संबंधों पर विशेष प्रभाव डालती है। जिस स्थान पर उत्तर और पश्चिम दिशा मिलती है उसे ही वायव्य कहा जाता है। इस दिशा में वायु तत्व की प्रधानता रहती है इसी कारण ये स्थान सदैव खुला होना चाहिए ताकि वायु का आवागमन उचित रूप से होता रहे। अच्छा हो अगर आप इसे घर का सबसे हल्का हिस्सा बना कर रखें। इस दिशा में छोटी घंटियाँ लगाने से विशेष फल प्राप्त होता है। वायु के संपर्क में आने से जब घंटियाँ बजती है तो वो पूरे घर में सकारात्मकता का प्रवाह करती है। इस अतिरिक्त इस दिशा में पेड़-पौधे भी लगाना चाहिए ताकि वहाँ की वायु सदैव शुद्ध और स्वच्छ बनी रहे। ऐसा करने पर मनुष्य को उसकी इच्छित वस्तु प्राप्त होती है।
  • दिशा: वायवी
  • दिक्पाल: वायु
  • मंत्र: ॐ यं वायवे नमः
  • अस्त्र: अंकुश
  • पत्नी: स्वास्ति
  • ग्रह: चंद्र
  • देवी: चन्द्रिका

7. उत्तर: उत्तर दिशा के अधिपति रावण के बड़े भाई कुबेर हैं। कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष भी हैं और इसी कारण इस दिशा का आपकी आर्थिक हालत पर बड़ा प्रभाव होता है। इस दिशा के स्वामी ग्रह बुध हैं और उनकी पत्नी इला इस दिशा की अधिष्ठात्री देवी हैं। इस दिशा का महत्त्व बहुत अधिक है और इसी कारण इसे "मातृ स्थान" भी कहा जाता है। ईशान दिशा के अतिरिक्त अगर घर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा में हो तो वो बड़ा शुभ होता है। इस स्थान को कभी भर कर नहीं रखना चाहिए। अगर संभव हो तो इस दिशा की ओर कच्ची भूमि छोड़ देना चाहिए। ऐसा करना बहुत ही समृद्धिदायक होता है। अगर इस दिशा को गन्दा रखा गया तो ये मनुष्य की धन संपत्ति का नाश कर उनके दुर्भाग्य का कारण बनता है। अतः इस दिशा को सदैव साफ सुथरा रखना चाहिए और किसी प्रकार की अपवित्र वस्तु यहाँ नहीं रखनी चाहिए।
  • दिशा: उत्तरा
  • दिक्पाल: कुबेर
  • मंत्र: ॐ सं कुबेराय नमः
  • अस्त्र: गदा
  • पत्नी: भद्रा
  • ग्रह: बुध
  • देवी: इला

8. ईशान: वैसे तो ईशान दिशा के दिक्पाल सोम (चन्द्रमा) हैं किन्तु इस दिशा का स्वामी स्वयं महाकाल भगवान शिव को माना जाता है। यही कारण है कि भगवान शंकर का एक नाम ईशान भी है। पूर्व और उत्तर की दिशाएं जहां मिलती हैं वो दिशा ईशान कहलाती है। हमारे घर में इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है और ये स्थान सबसे पवित्र माना जाता है। इसीलिए इस स्थान को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए। यदि ये स्थान खाली रहे तो और भी अच्छा है। अगर कुछ रखना ही हो तो इस दिशा में जल की स्थापना रखनी चाहिए। यहाँ पर जल से भरा मटका, पीने का पानी रख सकते हैं और अगर चाहें तो कुँए या बोरिंग भी इस दिशा में खुदवा सकते हैं। इस दिशा में कभी भी कचरा नहीं रखना चाहिए और साथ ही स्टोर, शौच स्थान या रसोईघर नहीं बनाना चाहिए। ऐसा करने से दुर्भाग्य आपके यहाँ घर कर लेता है।
  • दिशा: एशानी
  • दिक्पाल: सोम
  • मंत्र: ॐ चं चन्द्राय नमः
  • अस्त्र: पाश
  • पत्नी: रोहिणी
  • ग्रह: बृहस्पति
  • देवी: तारा

9. उर्ध्व: इस दिशा के देवता स्वयं परमपिता ब्रह्मा हैं। उर्ध्व का अर्थ आकाश है और जो कोई भी उर्ध्व की ओर मुख कर सच्चे मन से ईश्वर की प्रार्थना करता है, उसे उसका फल अवश्य प्राप्त होता है। वेदों में ऐसा लिखा है कि अगर कभी भी कुछ मांगना हो तो ब्रह्म और ब्रह्माण्ड से ही मांगना चाहिए। उनसे की हुई हर प्रार्थना स्वीकार होती है। हमारे घर की छत, छज्जे, रोशनदान एवं खिड़कियां इस दिशा का प्रतिनिधित्व करते हैं। कहा जाता है कि कभी भी आकाश की ओर देख कर अपशब्द नहीं बोलना चाहिए, आकाश की ओर कुछ फेंकना, थूकना, चिल्लाना इत्यादि वर्जित है। जिस प्रकार आकाश की ओर फेंकी हुई कोई भी चीज वापस आपके पास ही आती है उसी प्रकार आकाश की ओर देखकर की गयी प्रार्थना आप पर सकारात्मक प्रभाव डालती है और आपका जीवन खुशहाल हो जाता है। दूसरी ओर अगर आप आकाश की ओर देख कर अपशब्द कहते हैं अथवा बद्दुआ देते हैं तो वो वापस आपके ही जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है और उसे दुखों से भर देती है।
  • दिशा: ऊर्ध्वा
  • दिक्पाल: ब्रह्मा
  • मंत्र: ॐ ह्रीं ब्रह्मणे नमः
  • अस्त्र: पद्म
  • पत्नी: सरस्वती
  • ग्रह: केतु
  • देवी: ब्राह्मणी

10. अधो: जो इस पुरे ब्रह्माण्ड को आधार प्रदान करते हैं वो शेषनाग इस दिशा के अधिपति हैं। पुराणों में शेषनाग के स्वामी भगवान विष्णु को इस दिशा का दिक्पाल कहा गया है। जब भी कोई नया घर बनता है तो सर्वप्रथम धरती की वास्तु शांति की जाती है। कहा जाता है कि घर बनाने के लिए सदैव सकारात्मक ऊर्जा वाली भमि का चयन करना चाहिए। सुनसान अथवा कब्रिस्तान के पास की भूमि तो कदापि घर बनाने के लिए शुभ नहीं होती है। इस दिशा को अनुकूलित बनाने के बाद जीवन का आधार पुष्ट होता है उसमें स्थिरता आती है। इस दिशा को सदैव साफ़ सुथरा रखना चाहिए। जो भूमि पूर्व दिशा और आग्नेय कोण में ऊंची तथा पश्चिम तथा वायव्य कोण में धंसी हुई हो, ऐसी भूमि पर निवास करने वालों के सभी कष्ट दूर होते रहते हैं। अतः जब भी घर का निर्माण करना हो तो भूमि का चयन बहुत सोच समझ कर करना चाहिए।
  • दिशा: अधस्‌
  • दिक्पाल: अनंत
  • मंत्र: ॐ अं अनन्ताय नमः
  • अस्त्र: नागपाश
  • पत्नी: विमला
  • ग्रह: लग्न
  • देवी: वैष्णवी

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