Khatoo Shyam Ji: कलियुग में क्यों होती है इनकी पूजा, यहा सच में होते है चमत्कार
खाटू श्याम मंदिर: जय श्री श्याम, भारत राजस्थान में एक ऐसा दिव्य मंदिर है जो हारे के सहारे के नाम से मशहूर है भगवान श्री कृष्ण के श्याम नाम का मंदिर राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नगर में है इनके और भी कई नाम है जैसे शीश के दानी, श्याम बाबा, मोर्विनंदन, खाटू नरेश, लखदातार, नीले घोड़े का सवार, कलयुग का अवतार दीनानाथ ये सभी नाम तो भक्तो द्वारा दिए गए है लेकिन जन्म से इनका नाम बर्बरीक था। आज हम पढ़ते है राजस्थान के इसी चमत्कारी मंदिर के बारे में जहा श्रद्धालुओ की भीड़ लगती है ऐसा क्या है इस मंदिर में और क्यू खाटू श्याम जी को कलयुग का भगवान कहा जाता है।
कौन है खाटू श्याम जी? Who is Khatoo Shyam Ji?
महाभारत के समय राजा पांडू के पुत्र भीम का विवाह वनवास के समय राक्षश हिडींब की बहन हिडिम्बा से हुआ था उन्ही की महान संतान हुईं जिन्हें आज हम घटोत्कच के नाम से जानते है शास्त्रार्थ की प्रतियोगिता जितने पर इनका विवाह राजा दैत्यराज मुर की पुत्री का कामकटंककटा से संपन्न हुआ था कामकटंककटा को मोरवी के नाम से भी जाना जाता है। घटोत्कच और मोरवी का एक पुत्र हुआ जिसके बाल घुंघराले थे जिनकी वजह से वह बालक बब्बर शेर जैसा प्रतिक होने लगा और इसी कारण उसका नाम बर्बरीक रखा गया। यही बालक वीर बर्बरीक ही आज खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है।
बर्बरीक कैसे बने खाटूश्यामजी? Khatooshyamji Story
जन्म से ही अपनी दादी हिडिम्बा से प्रेरित बालक बर्बरीक धर्म और भक्ति के मार्ग पर था और जन्म से अपने दादा और पिता जैसे बलवान था जैसे जैसे आयु बढ़ी वैसे वैसे बल और बुद्धि बढती जा रही थी एक समय की घटना है की एक बार वन विचरण के दौरान भीम एक नदी के पास हाथ पैर धो रहे थे तभी उन्हें एक छोटे बालक ने रोक दिया और कहा की इस जल मैं प्रतिदिनं देवी माँ की पूजा करता हु तुम यह हाथ पैर नहीं धो सकतें तो भीम में समझाया की नदी का पानी सदैव बहता रहता है इसलिए वो दूषित नहीं होता लेकिन बाल बुद्धि और बाल हट के कारण बर्बरीक अड़ गए उन्होनें भीम को रोका इस बिच भीम और बर्बरीक में युद्ध शुरू हुआ बालक समाज कर भीम अहंकार में उन्हें कमज़ोर समझ रहे थे लेकिन जब बर्बरीक के प्रहारों से भीम को गंभीर चोट आयी तब भीम ने अपनी पूरी शक्ति का प्रयोग करना शुरू कर दिया लेकिन उस छोटे से बालक से जीत नहीं सके लड़ते लड़ते भीम मुर्छित हो गयें अपनें से बडें को मुर्छित देखकर बर्बरीक के ह्रदय में करुणा जागी और वो उन्हें उठाकर अपने घर ले गयें वहा भीम को मुर्छित अवस्था में देखकर घटोत्कच और माता मोरवी परेशान हो गयें उन्होंने पूछा की इनकी ये दशा किसने की कौन है वो बलवान जो बलि भीम को मुर्छित कर सकता है फिर बर्बरीक ने पूरा किस्सा बता दिया जिसपर क्रोधित होकर पिता घटोत्कच ने कहा की तुम जानतें भी हो की तुमने किसपर प्रहार किया है ये तुम्हारें दादा है पांडू पुत्र भीम ये सुनकर बर्बरीक रो पड़े और क्षमा मांगने लगे फिर भीम होश में आने पर घटोत्कच को सामने देखकर प्रसन्न हो गए और घटोत्कच ने बताया की बर्बरीक को क्षमा कर दे वो आपका ही पौत्र है इसपर भीम को ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा है उन्होंने कहा इस आयु में इस बालक ने उस भीम को हराया है जिसके सामने पूरी सेना भी नहीं टिक पाती और आशीर्वाद देकर चले गयें।
बर्बरीक अपनी दादी से मोक्ष और मुक्ति की कथाये सुनते थे तब उनके मन में भाव जागा और उन्होंने जिज्ञासा वश दादी हिडिम्बा से पूछा की मोक्ष चाहियें इसका सबसे सरल उपाय क्या है तब दादी ने कहा की कठिन भक्ति से मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है ये सुनकर बर्बरीक ने कहा ये बहुत की लम्बा उपाय कोई ऐसा उपाय बताये की जल्दी ही मोक्ष मिल जाए तब दादी ने कहा भगवान के हाथो से मृत्यु पाने वाला मोक्ष को प्राप्त होता है तब बर्बरीक ने कहा की में भगवान श्री कृष्ण के पास जाकर उनसे कहूँगा की मेरा वध कर दे। इसपर दादी हसने लगी और कहा की भगवान ऐसे ही किसी का वध नहीं करतें फिर बर्बरीक ने कहा की में कठोर तप करूँगा और शक्ति अर्जित करूँगा फिर भगवान श्री कृष्णा से युद्ध करूँगा तब तो उन्हें मुझे पराजित करने के लिए मेरा वध कर देंगें ऐसा कहकर बर्बरीक कठोर तप करने चला गया और उसने अपने तप से देवी अपराजिता को प्रसन्न कर दिया फिर देवी ने वरदान स्वरुप उन्हें 3 बाण दिए और वर दिया की ये 3 बाण अपराजित है इनके सामने कोई श्राप और कोई वरदान टिक नहीं सकता पूरी सेना को सिर्फ एक बाण से समाप्त किया जा सकता है शक्ति लेकर बर्बरीक अपनी दादी के पास गए तब उन्हें पता चला की महाभारत को युद्ध शुरू होने को है। यह सुन बर्बरीक ने कहा मुझे भी युद्ध देखना है तब दादी ने कहा भीम और दुर्योधन दोनों ही तुम्हारे दादा है तुम उसी का साथ देना जो युद्ध में हार रहा होगा यह वचन सुन बर्बरीक युद्ध भूमि की तरफ चले गए।
रणभूमि में एक बालक को सिर्फ 3 बाण लेकर आये हुए देखकर कुछ लोगो हसने और उपहास करने लगे और कुछ गंभीर थे की ये बालक कौन है तभी भगवान श्री कृष्ण ने सबके साथ उस बालक के पास जाकर पूछा की हे बालक तुम कौन हो और 3 बाणों से क्या करोगे। भगवान श्री कृष्ण को प्रमाण कर उस बालक ने अपना परिचय दिया की बलि भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक हु में इस युद्ध में भाग लेने आया हु तब अर्जुन ने प्रसन्न होकर कर बेटा सिर्फ 3 बाणों से कैसे युद्ध करोगे और तुम किस सेना की तरफ से युद्ध करोगे इसपर बर्बरीक ने कहा 3 बाण तो ज्यादा है इस युद्ध को समाप्त करने के लिए मेरा सिर्फ एक बाण ही पर्याप्त है और जो सेना हारेगी में उस सेना का साथ दूंगा। ये सुनकर भगवान श्री कृष्ण चिंतित हो गए उन्होंने सोचा की पांडव विजय पर तो संकट आ गया है। उन्होनें तुरंत एक योजना बनाई और उस बालक से कहा की एक बाण में इतनी शक्ति है तो परीक्षा दो फिर क्या एक पीपल का पेड़ दिखाकर भगवन श्री कृष्ण ने कहा की मान लो इस पेड़ के सारे पत्ते सेना है तुम अपने एक ही बाण से सभी पत्तो को छेद कर दो बर्बरीक ने आज्ञा पाकर तीर चलाया इसी बिच श्री कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैरो के नीचें छुपा लिया था बर्बरीक का बाण सभी पत्तो को छेद के श्री कृष्ण के पैर के पास आकर रुक गया था तभी भगवान ने अपना पैर हटाया और उस बाण ने वो छिपा हुआ पत्ता भी छेद दिया। तब श्री कृष्ण ने उनसे गुरुदक्षिणा के रूप में बर्बरीक से उसके शीश का दान मांग लिया। तभी से बर्बरीक को शीश का दानी कहा जाता है शीश कटने पर बर्बरीक का शीश बोला हे भगवान मुझे ये युद्ध देखना है तभी भगवान श्री कृष्णा ने बर्बरीक को अपना श्याम नाम दिया और कहा की आपका शीश आसमान में विचरण कर युद्ध देखेगा फिर आपको कलयुग में मेरे श्याम नाम से आपकी पूजा होगी। उसी आशीर्वाद से भगवान श्री कृष्णा की शक्तियों के साथ खाटू श्याम में श्याम बाबा की पूजा की जाती है और जैसा उनके युद्ध का संकल्प था जो युद्ध में हारेगा उसका वो साथ देंगे इसलिए खाटू श्याम को हारे का सहारा कहा जाता है।
कैसे बना खाटू श्याम का मंदिर?
ऐसा कहा जाता है कि कलयुग की शुरुआत में राजस्थान के खाटू गांव में उनका सिर मिला था। कहते हैं ये अद्भुत घटना तब घटी जब वहां खड़ी गाय के थन से अपने आप दूध बहने लगा था। इस चमत्कारिक घटना को जब खोदा गया तो यहां खाटू श्याम जी का सिर मिला। अब लोगों के बीच में ये दुविधा शुरू हो गई कि इस सिर का किया जाए। बाद में उन्होंने सर्वसम्मति से एक पुजारी को सिर सौंपने का फैसला किया। इसी बीच क्षेत्र के तत्कालीन शासक रूप सिंह को मंदिर बनवाने का सपना आया। इस प्रकार रूप सिंह चौहान के कहने पर 1027 ई. इस जगह पर मंदिर निर्माण शुरू किया गया और खाटूश्याम की मूर्ति स्थापित की गई।
खाटू श्यामजी कैसे पहुंचे? How to reach Khatu Shyam Ji?
खाटू श्याम का मंदिर जयपुर से 80 किमी दूर खाटू गांव में मौजूद है। खाटू श्याम जी पहुंचने के लिए सबसे पास का रेलवे स्टेशन रिंगस है। जहां से बाबा के मंदिर की दूरी 18.5 किमी है। रेलवे स्टेशन से निकलने के बाद आपको मंदिर के लिए टैक्सी और जीप ले सकते हैं। अगर आप फ्लाइट से जा रहे हैं, तो सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। यहां से मंदिर की दूरी 95 किमी है।