दस महाविद्या: चतुर्थ विद्या महाविद्या भुवनेश्वरी | इनकी भक्ति से तेजस्वी संतान प्राप्ति होती है
शास्त्रों में माँ
पार्वती (सती) के दस रूपों को दस महाविद्या कहा गया है इनके वर्णन इस प्रकार है काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर
भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता हैं। प्रत्येक महाविद्या
का अपना अलग महत्त्व है व अलग पूजा विधि है और अलग फल है इनमे देवी के कुछ रूप
उग्र स्वाभाव के है कुछ सौम्य और कुछ सौम्य उग्र । देवी के उग्र रूप की साधना व
उपासना बिना गुरु के दिशा निर्देशों के ना करे ।
महाविद्या भुवनेश्वरी: - अखंड ब्रम्हांड की देवी पृथ्वी देवी है माँ भुवनेश्वरी इनके नाम से ही सार्थक है चतुर्थ महाविद्या है देवी भुवनेश्वरी, समस्त भुवन की ईश्वर भुवनेश्वरी, महाविद्या भुवनेश्वरी ब्रम्हांड के निर्माण और संचालन के उद्देश्य से हुआ था । सौम्य रूप धरी माँ भुवनेश्वरी शताक्षी तथा शाकुम्भरी देवी के नाम से भी प्रसिद्ध है । पुत्र प्राप्ति के लिए माँ की पूजा आराधना विशेष फलदायी है व सिद्धिया देना माँ भुवनेश्वरी का विशेष गुण है ।
महाविद्या भुवनेश्वरी का रूप (Mahavidya Bhuvaneshwari Ka Roop)
वर्ण: उगते सूर्य के समान तेज व सुनहरा
केश: खुले हुए व व्यवस्थित
वस्त्र: लाल व पीले रंग के
नेत्र: तीन
हाथ: चार
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: अंकुश, फंदा, अभय व वर मुद्रा
मुख के भाव: शांत व अपने भक्तों को देखता हुआ
अन्य विशेषता: इनका तेज सर्वाधिक हैं जिसमें कई सूर्यों की शक्ति निहित हैं।
महाविद्या भुवनेश्वरी के मंत्र (Mahavidya Bhuvaneshwari Ke Mantra)
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः॥
ॐ ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:
महाविद्या भुवनेश्वरी पूजा के लाभ (Mahavidya Bhuvaneshwari Puja Ke Labh)
- संतान प्राप्ति की कामना का पूरी होना
- आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति होना
- शरीर में ऊर्जा का अनुभव करना
- कार्य करने की शक्ति प्राप्त होना इत्यादि ।
माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र
अष्टसिद्धिरालक्ष्मी अरुणाबहुरुपिणि
त्रिशूल भुक्कुरादेवी पाशाकुशविदारिणी ॥१
खड्गखेटधरादेवी घण्टनि चक्रधारिणी
षोडशी त्रिपुरादेवी त्रिरेखा परमेश्वरी ॥२
कौमारी पिंगलाचैव वारीनी जगामोहिनी
दुर्गदेवी त्रिगंधाच नमस्ते शिवनायक ॥३
एवंचाष्टशतनामंच श्लाके त्रिनयभावितं
भक्तये पठेन्नित्यं दारिद्रयं नास्ति निश्चितं ॥४
एकः काले पठेन्नित्यं धनधान्य समाकुलं
द्विकालेयः पठेन्नित्यं सर्व शत्रुविनाशानं ॥५
त्रिकालेयः पठेन्नित्यं सर्व रोग हरम परं
चतुःकाले पठेन्नित्यं प्रसन्नं भुवनेश्वरी ॥६
इति श्री रुद्रयावले ईश्वरपार्वति संवादे
॥ श्री भुवनेश्वरी स्तोत्र संपूर्णं ॥