आमिर खान की फिल्म लाल सिंह चड्ढा को लेकर भी बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं यह फिल्म फॉरेस्ट गम्प नाम की हॉलीवुड़ फिल्म की रीमेक है फॉरेस्ट गम्प एक अमेरिकी बच्चे/युवा की कहानी है जो रीढ़ की हड्डी की समस्या के कारण चल नहीं पाता था। साथ ही वह मानसिक रूप से भी स्मार्ट लोगों की श्रेणी में नहीं था। यह एक व्यक्ति के अदम्य साहस, संघर्ष से कमजोरियों पर विजय पाने, उसकी मासूमियत और प्रेम की कहानी है. फिल्म अगर सिर्फ यही होती तो आमिर खान या कोई भी अच्छा एक्टर आसानी से इसको कॉपी कर लेता।
लेकिन फॉरेस्ट गम्प इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्र की भी यात्रा है. शारीरिक रूप से असमर्थ एक बच्चे के जीवन यात्रा राष्ट्र की जीवन यात्रा से जुड़कर चलती है और यही बात इस फिल्म को खास बनाती है। दिलचस्प बात ये है कि अमेरिकी राष्ट्र की जिस यात्रा को ये फिल्म दिखाती है वह कतई गौरवशाली नहीं है। अमेरिका के जिन तीन दशकों को ये फिल्म दिखाती है, उसमें राष्ट्र की गौरव गाथा ही नहीं, उसकी बुराइयां, नीचता और घटियापन भी उजागर होती है। फॉरेस्ट गम्प में अमेरिकी राष्ट्र कोई पवित्र चीज नहीं है. फॉरेस्ट गम्प में दिखाए गए अमेरिका में नस्लवाद, युद्धोन्मादी शासन, लिंगभेद और पुरुष वर्चस्व पूरी क्रूरता से सामने आया है।
फॉरेस्ट गम्प में स्कूल एडमिशन का जो दृश्य है, उसे भारतीय संदर्भ में दिखा पाना आसान नहीं होगा। इस दृश्य में स्कूल का प्रिंसिपल कम आईक्यू वाले गम्प को एडमिशन देने के बदले में गम्प की मां से सेक्स मांगता है और गम्प की मां इसके लिए तैयार हो जाती है। इसमें नस्लवाद और नस्लवाद-विरोधी संघर्ष को लगातार दिखाया गया है। गम्प को अपने उस पूर्वज का मजाक उड़ाते दिखाया गया है, जिसने नस्लवादी संगठन कू क्लक्स क्लान बनाया था। गम्प जिस यूनिवर्सिटी में हैं, वहां यूनिवर्सिटी ऑफ अलाबामा में पहले-पहल जब दो अश्वेत स्टूडेंट्स आते हैं तो उस समय के रोमांच और तनाव को ये फिल्म दिखाती है. ये फॉरेस्ट गम्प की व्यक्तिगत मासूमियत ही है जो नस्लवाद का निषेध करती है। फिल्म में गम्प के दोस्त अश्वेत सैनिक बूबा की भी कहानी है, जिसे फौज में शामिल तो कर लिया गया है लेकिन पूरी फिल्म में वह युद्ध और हार-जीत पर एक शब्द नहीं कहता। वह हमेशा झींगा मछली पालन और उसके लिए नाव खरीदने की ही बात करता है। ये फिल्म दिखाती है कि अश्वेत बूबा के परिवार की औरतें कई पीढ़ियों से श्वेत मालिकों को झींगा मछली बनाकर खिलाती हैं, पर जब झींगा मछली बिजनेस का पैसा आता है तो युद्ध में मारे गए बूबा की पत्नी के घर में एक श्वेत रसोइया उसे झींगा परोसती है। भारतीय संदर्भ में ये कहानी किसी दलित के जीवन की हो सकती है. लेकिन इसे फिल्मों में दिखाना आसान नहीं है।
आपने अभी तक तक बॉलीवुड स्टार आमिर खान की मूवी 'लाल सिंह चड्ढा’ का ट्रेलर तो देख ही लिया होगा, लेकिन क्या आपने उसमें उस बड़ी सी संरचना पर ध्यान दिया, जो बड़े पक्षी जैसी दिख रही थी? आपको बता दें, ये इमारत दुनिया की सबसे इमारत में गिनी जाती है। पहाड़ी की चोटी की मूर्ति केरल की प्रसिद्ध जटायुपारा या जटायु इमारत है, जो कोल्लम जिले के चदयामंगलम में स्थित है। जिस तरह से केरल की खूबसूरत इमारत को ट्रेलर में दिखाया गया है, जटायु अर्थ सेंटर में जटायु की मूर्ति को एक पक्षी की मूर्ती के रूप में बनाया गया है। ये मूर्ती दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ती के रूप में प्रसिद्ध है। इस जगह को 65 एकड़ में बनाया गया है, और मूर्ती पर्वत की चोटी पर समुद्र तल से 1200 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मूर्ति को लेटने की पोजीशन में बनाया गया है, जिसमें एक पंख टूटा हुआ है, तो दूसरा पंख ऊपर की ओर हवा में है। पूंछ के पंख से सिर तक फैली हुई कुल लंबाई 200 फीट है और यह 150 फीट चौड़ी है। यह मूर्ति भारत के केरल राज्य में कोल्लम जिले के चादयामंगलम गांव में स्थित है।
फिल्म का ट्रेलर तो काफी अच्छा लगा अब इंतज़ार रहेगा फिल्म के रिलीज का ।