ब्रजमंडल कैसे बसा
बृजमंडल कैसे बना: एक विस्तृत मार्गदर्शिका
बृजमंडल, जिसे ब्रज क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में फैला हुआ एक पवित्र भूभाग है। यह क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का साक्षी रहा है। बृजमंडल का निर्माण मुख्य रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक कारणों से हुआ है। बृजमंडल की पवित्रता और महत्व का आधार यहां घटित हुईं भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत लीलाओं में छिपा है।
बृजमंडल का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
बृजमंडल के हर कोने में भगवान श्रीकृष्ण की यादें बसी हुई हैं। इस क्षेत्र का सबसे प्रमुख स्थान मथुरा है, जो भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान है। मथुरा के अलावा, वृंदावन, गोवर्धन पर्वत, बरसाना और नंदगांव भी बृजमंडल के प्रमुख स्थल हैं। बृजमंडल का धार्मिक महत्व केवल भगवान श्रीकृष्ण के जीवन और लीलाओं के कारण ही नहीं, बल्कि यहां के मंदिरों, घाटों, कुंडों और धार्मिक मेलों के कारण भी है।
ऐसे बसा ब्रज: कथा ब्रज की
यदुवंश में शूरसेन नाम के एक पराक्रमी क्षत्रिय हुए। उनकी पत्नी का नाम मारिषा था। उनके दस पुत्र हुए। वसुदेवजी उनके सबसे श्रेष्ठ पुत्र थे। इनका विवाह देवक की सात कन्याओं से हुआ। वसुदेवजी की पौरवी, रोहिणी, भद्रा, मदिरा, रोचना, इला और देवकी ये सात पत्नियां थीं।
महाराज उग्रसेन के एक भाई थे, उनका नाम देवक था। देवकी जी उन्हीं की पुत्री थीं देवकीजी के आठ पुत्र हुए- कीर्तिमान्, सुषेण, भद्रसेन, ऋृजु, सम्मर्दन, भद्र, संकर्षण तथा आठवें स्वयं भगवान श्रीकृष्ण।
वसुदेव-देवकीजी की सुभद्रा नाम की एक कन्या भी थी। कंस देवकी जी का चचेरा भाई था। ये कंस से छोटी थीं। देवकीजी के छ: पुत्रों को जन्म होते ही क्रूर कंस ने एक-एक करके मार दिया। देवकीजी के सप्तम गर्भ को महामाया ने वसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इसलिए इनका नाम 'संकर्षण' पड़ा। आठवें पुत्र के रूप में स्वयं भगवान विष्णु ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया।
कारागार में वसुदेव-देवकीजी के सामने जब श्रीभगवना विष्णु चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए तो उन्होंने कहा, देवी स्वायम्भुव मन्वन्तर में आपका नाम पृश्नि था वसुदेव जी सुतपा नाम के प्रजापति थे। तुम दोनों ने देवताओं के बारह हजार वर्षों तक कठिन तप करके मुझे प्रसन्न किया। क्योंकि तुम दोनों ने तपस्या, श्रद्धा और प्रेममयी भक्ति से अपने हृदय में निरन्तर मेरी भावना की थी, इसलिए मैं तुम्हें वर देने के लिए प्रकट हुआ।
मैंने कहा कि तुम्हारी जो इच्छा हो सो मुझसे माँग लो, तब तुम दोनों ने मेरे जैसा पुत्र मांगा। उस समय मैं 'पृश्निगर्भ' के नाम से तुम दोनों का पुत्र हुआ। फिर दूसरे जन्म में तुम हुईं अदिति और वसुदेव हुए कश्यप। उस समय भी मैं तुम्हारा पुत्र हुआ। मेरा नाम था 'उपेन्द्र'। शरीर छोटा होने के कारण लोग मुझे 'वामन' भी कहते थे। तुम्हारे इस तीसरे जन्म में भी मैं उसी रूप में फिर तुम्हारा पुत्र हुआ हूं।
इस प्रकार अनेक बातें बताकर विष्णु ने समझाया और माता देवकी के कहने से बालरूप धारण कर लिया। विष्णुरूप भगवान श्रीकृष्ण की आठ पत्नियां थीं- रुक्मणि, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। उक्त सभी पत्नियों से दस दस पुत्रों का जन्म हुआ।
1 श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्र : प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू।
2.जाम्बवती-कृष्ण के पुत्र-पुत्री : साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, शतजित, सहस्त्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ और क्रतु। साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था। साम्ब ने दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से विवाह किया था।
3.सत्यभामा-कृष्ण के पुत्र-पुत्री : भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।
4.कालिंदी-कृष्ण के पुत्र-पुत्री : श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास और सोमक।
5.मित्रविन्दा-श्रीकृष्ण के पुत्र-पुत्री : वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महांस, पावन, वह्नि और क्षुधि।
6.लक्ष्मणा-श्रीकृष्ण के पुत्र-पुत्री :
, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊर्ध्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजित।
7.सत्या-श्रीकृष्ण के पुत्र-पुत्री : वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगुप्त, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुंति।
8.भद्रा-श्रीकृष्ण के पुत्र-पुत्री : संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक।
उपरोक्त सभी में से प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध और अनिरुद्ध के पुत्र वज्र का ही वंश आगे चला। वज्र से ही ब्रजमंडल बसा है।
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