दस महाविद्या: अष्टम विद्या महाविद्या बगलामुखी की साधना करने के लिए अर्जुन से क्यों कहा था श्री कृष्ण ने
शास्त्रों में माँ
पार्वती (सती) के दस रूपों को दस महाविद्या कहा गया है इनके वर्णन इस प्रकार है काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर
भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता हैं। प्रत्येक महाविद्या
का अपना अलग महत्त्व है व अलग पूजा विधि है और अलग फल है इनमे देवी के कुछ रूप
उग्र स्वाभाव के है कुछ सौम्य और कुछ सौम्य उग्र । देवी के उग्र रूप की साधना व
उपासना बिना गुरु के दिशा निर्देशों के ना करे ।
महाविद्या बगलामुखी:- अष्टम महाविद्या श्री बगलामुखी को पीताम्बरा भी कहा जाता है इनके वस्त्र पीले है व इनके मुख पर स्वर्ण समान तेज है माँ का शृंगार भी स्वर्ण आभूषणों व पित पुष्पों से है माँ को पिला रंग प्रिय है । तंत्र की देवी कहलाने वाली में बगलामुखी का स्वाभाव उग्र है इसलिए इनकी साधना बिना गुरु के निर्देश नहीं करनी चाहिएं । शत्रु नाश के लिए स्वयं भगवान् श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने माता बगलामुखी की ही आराधना की थी जिसके फलस्वरूप उन्हें युद्ध में विजय श्री का आशीर्वाद मिला था । माता की उत्पत्ति की कथा कुछ ऐसी है की एक बार सौराष्ट्र में भयंकार तूफ़ान से तबाही मची हुयी थी, तब तूफ़ान को शांत करने के लिए देवताओं ने श्री हरी विष्णु से प्रार्थना की थी और देवताओं की प्रार्थना पर श्री विष्णु ने देवी को प्रसन्न करने हेतु तप किया जिससें माँ ने अपने बगलामुखी रूप को प्रकट किया और स्तंभन शक्ति से तूफ़ान को शांत कर दिया इसलिए इनको स्तंभन शक्ति की देवी भी कहा जाता है ।
महाविद्या बगलामुखी का रूप (Mahavidya Baglamukhi Ka Roop)
वर्ण: सुनहरा
केश: खुले हुए व व्यस्त
वस्त्र: पीले
नेत्र: तीन
हाथ: दो
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: बेलन के आकार का शस्त्र व राक्षस की जिव्हा
मुख के भाव: डराने वाले
अन्य विशेषता: स्वर्ण सिंहासन के ऊपर एक राक्षस का मृत शरीर हैं और उसके ऊपर माँ बैठी हैं। राक्षस को नियंत्रण में करने का व डराने का प्रयास कर रही हैं।
महाविद्या बगलामुखी मंत्र (Mahavidya Baglamukhi Mantra)
ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नमः
ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा (2)
महाविद्या बगलामुखी पूजा के लाभ (Mahavidya Baglamukhi Puja Ke Labh)
- शत्रुओं का समूल नाश व उन पर लगाम लगाना
- दुष्टों को अपंग बनाना
- विपत्ति का हल करना
- आगे का मार्ग प्रशस्त करना इत्यादि ।
माँ बगलामुखी अष्टोत्तर-शतनाम-स्तोत्रम् (Maa Baglamukhi Ashtottara Shatnam Stotram)
ओम् ब्रह्मास्त्र-रुपिणी देवी, माता श्रीबगलामुखी ।
चिच्छिक्तिर्ज्ञान-रुपा च, ब्रह्मानन्द-प्रदायिनी ॥ 1 ॥
महा-विद्या महा-लक्ष्मी, श्रीमत् -त्रिपुर-सुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता, पार्वती सर्व-मंगला ॥ 2 ॥
ललिता भैरवी शान्ता, अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छिन्नमस्ता च, तारा काली सरस्वती ॥ 3 ॥
जगत् -पूज्या महा-माया, कामेशी भग-मालिनी ।
दक्ष-पुत्री शिवांकस्था, शिवरुपा शिवप्रिया ॥ 4 ॥
सर्व-सम्पत्-करी देवी, सर्व-लोक वशंकरी ।
वेद-विद्या महा-पूज्या, भक्ताद्वेषी भयंकरी ॥ 5 ॥
स्तम्भ-रुपा स्तम्भिनी च, दुष्ट-स्तम्भन-कारिणी ।
भक्त-प्रिया महा-भोगा, श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥ 6 ॥
मेना-पुत्री शिवानन्दा, मातंगी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च, नृपाराध्या नरोत्तमा ॥ 7 ॥
नागिनी नाग-पुत्री च, नगराज-सुता उमा ।
पीताम्बरा पीत-पुष्पा च, पीत-वस्त्र-प्रिया शुभा ॥ 8 ॥
पीत-गन्ध-प्रिया रामा, पीत-रत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्ध-चन्द्र-धरी देवी, गदा-मुद्-गर-धारिणी ॥ 9 ॥
सावित्री त्रि-पदा शुद्धा, सद्यो राग-विवर्द्धिनी ।
विष्णु-रुपा जगन्मोहा, ब्रह्म-रुपा हरि-प्रिया ॥ 10 ॥
रुद्र-रुपा रुद्र-शक्तिद्दिन्मयी, भक्त-वत्सला ।
लोक-माता शिवा सन्ध्या, शिव-पूजन-तत्परा ॥ 11 ॥
धनाध्यक्षा धनेशी च, धर्मदा धनदा धना ।
चण्ड-दर्प-हरी देवी, शुम्भासुर-निवर्हिणी ॥ 12 ॥
राज-राजेश्वरी देवी, महिषासुर-मर्दिनी ।
मधु-कैटभ-हन्त्री च, रक्त-बीज-विनाशिनी ॥ 13 ॥
धूम्राक्ष-दैत्य-हन्त्री च, भण्डासुर-विनाशिनी ।
रेणु-पुत्री महा-माया, भ्रामरी भ्रमराम्बिका ॥ 14 ॥
ज्वालामुखी भद्रकाली, बगला शत्र-ुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्र-पूज्या च, गुह-माता गुणेश्वरी ॥ 15 ॥
वज्र-पाश-धरा देवी, जिह्वा-मुद्-गर-धारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी, बगला परमेश्वरी ॥ 16 ॥
फल- श्रुति अष्टोत्तरशतं नाम्नां, बगलायास्तु यः पठेत् ।
रिप-ुबाधा-विनिर्मुक्तः, लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात्॥ 1 ॥
भूत-प्रेत-पिशाचाश्च, ग्रह-पीड़ा-निवारणम् ।
राजानो वशमायाति, सर्वैश्वर्यं च विन्दति ॥ 2 ॥
नाना-विद्यां च लभते, राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् ।
भुक्ति-मुक्तिमवाप्नोति, साक्षात् शिव-समो भवेत् ॥ 3 ॥
॥ श्रीरूद्रयामले सर्व-सिद्धि-प्रद श्री बगलाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् ॥