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10 महाविद्या क्या है? पढ़े कैसे होती है इनकी पूजा और क्या फल है इनकें
Spiritual / 2022/10/24

10 महाविद्या क्या है? पढ़े कैसे होती है इनकी पूजा और क्या फल है इनकें

दस महाविद्या: शास्त्रों और ग्रंथो में हमनें अक्सर दस महाविद्या के बारे में सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते है की ये दस महाविद्या कौन है और इनकी उत्पत्ति कैसे हुईं? इनकी पूजा कैसे करे? इनके मंत्र क्या है? दस महाविद्या के संबंध में पूरी जानकारी आज इस आर्टिकल में हम आपको देने जा रहे है । मान्यता है की इन दस महाविद्या की साधना करने मनुष्य अपनीं सभी मनोकामनाओ को पूर्ण कर सकता है ।

ब्रम्हांड की सभी शक्तियों में सबसे शक्तिशाली विद्या कहलाती है ये दस महाविद्या । कहते है की इनकी साधना करके मनुष्य अपने कर्मो को सुधार सकता है और समस्त जीवन सुख भोगकर परलोक में भी परम पद को प्राप्त करता है । 10 दिशाओं की ये दस शक्तियां कहलाती है माँ आदिशक्ति देवी पार्वती के 10 रूपों को ही 10 महाविद्या कहा गया है, यह विद्याये इतनी उर्जावान और तेजवान है की इन्हें देखकर प्रथम बार स्वयं भगवान् शिव भी आश्चर्य में पड़ गयें है । आईये विस्तार से पढ़ते है इनके बारे में ।

दस दिशाओं की दस महाविद्याओ के नाम इस प्रकार है ।

  • महादेवी काली और देवी तारा, उत्तर दिशा की शक्ति है ।

  • श्री विद्या (षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी), ईशान दिशा की शक्ति है ।

  • देवी भुवनेश्वरी, पश्चिम दिशा की महाविद्या है ।

  • श्री त्रिपुर भैरवी, दक्षिण दिशा की महाविद्या है ।

  • माता छिन्नमस्ता, पूर्व दिशा की शक्ति है ।

  • भगवती धूमावती, आग्नेय दिशा की महाविद्या है ।

  • माता बगला (बगलामुखी), दक्षिण दिशा की देवी है ।

  • भगवती मातंगी, वायव्य दिशा की महाविद्या है ।

  • माता श्री कमला, र्नैत्य दिशा की अधिष्ठातृ देवी है ।

इस प्रकार माँ के ये दस रूप (दस महाविद्या) है वेदों और शास्त्रों में कही - कही 24 महाविद्याओ का भी उल्लेख मिलता है लेकिन मूलतः 10 महाविद्याओ को ही कहा गया है । जिस प्रकार मनुष्यों के कुल होते है उस प्रकार इन महाविद्याओ को इन्हें भी 2 कुलो में विभाजित किया गया है, प्रथम है श्री कुल और दूसरा है काली कुल शास्त्रों में इन दोनों ही कुल में 9 - 9 देविओ का वर्णन किया गया है । इस अनुसार इनकी संख्य 18 हो जाती है गुण और स्वभाव के अनुसार महाविद्याओ के 3 प्रकार के रूपों का वर्णन किया गया है उग्र, सौम्य तथा सौम्य उग्र ।

देवी काली, देवी धूमावती, देवी बगलामुखी और देवी छिन्नमस्ता को उग्र स्वभाव की देवी कहा जाता है ।

देवी त्रिपुरसुंदरी, देवी भुवनेश्वरी, माँ मातंगी और देवी कलमा सौम्य स्वरुप की देवी है ।

देवी तारा और देवी भैरवी को सौम्य - उग्र स्वभाव की देवी कहा जाता है । 

समय समय पर मनुष्य इन महाविद्याओ को साध कर जगत कल्याण के लिए देवी की उपासना करता आया है । इन महाविदयाओ की उपसाना से दुष्टों का नाश होकर सर्व सिद्धि प्राप्त होती है ।

दस महाविदयाओ की उत्त्पत्ति कैसे हुयी? 

शिवपुराण की कथा अनुसार एक समय भगवान् शिव के विवाह उपरान्त देवी सती (देवी पार्वती पूर्व जन्म में) के पिता राजा दक्ष ने भगवान् शिव का अपमान करने के उद्देश्य से हवन यज्ञ का आयोजन किया, उस यज्ञशाला में भगवान् शिव और देवी सती को आमंत्रण नहीं दिया लेकिन देवी हट करने लगी की में अपने पिता के घर यज्ञ में जाउंगी, पिता के घर जाने में आमन्त्र की क्या आवश्यकता इसपर भगवान् शिव ने मना कर दिया परन्तु देवी हट नहीं त्याग रही थी और क्रोधित हो गयी और उसी क्रोध स्वरुप माँ का शरीर काला पड़ने लगता है यह देखकर भगवान् शिव ने सोचा की अगर देवी सती के पास रुके तो उनका क्रोध बढ़ सकता है इसलिए उनके क्रोध को शांत करने के उद्देश्य से भगवान् शिव वह से उठकर अन्य स्थान की और प्रस्थान करने लगे ।

जैसे ही शिव आगे बढे उनके सामने अत्यंत क्रोध स्वरुप में तेजवान देवी काली प्रकट हो गयी और उनका मार्ग रोक लिया फिर शिव पश्रिम दिशा में बढे वहा उनके समक्ष अपने ही कटे सर को हाथ में लेकर और कटी गर्दन से खून की धाराए बह रही है ऐसा रोद्र रूप धारण कर मोक्ष प्रदान करने वाली देवी छिन्मस्तिका प्रकट होती है । शिव ने सोचा की आकाश मार्ग से ही जाना बेहतर होगा लेकिन वह नीलवर्ण देवी तारा में उनका मार्ग रोक लिया । यह देख भोलेनाथ पीछे मुड़े तो शत्रु नाश करने वाली देवी बगलामुखी प्रकट हुईं । बाई और मुड़ने पर देवी भुवनेश्वरी मार्ग रोके हुए थी, वायव्य दिशा में जाने पर देवी मातंगी, ईशान में देवी षोडशी, अग्निकोण में देवी धूमावती और फिरसे पलटकर वापिस जाने पर स्वयं देवी सती भैरवी रूप में मार्ग बाधित कर रही थी । 

समस्त देविया क्रोध में भयंकर गर्जना कर रही थी उनका गर्जन वातावरण को भयभीत करने वाली थी फिर भगवान् शिव विचार में पड़ गए की यह किसकी माया है फिर वे समज गए की यह सब देवी सती की ही माया है जो उनके क्रोधवश अनियंत्रित होकर प्रकट हुईं है । भगवान् शिव चिंता में पड़ गए की देवी को ना रोका गया तो ये दिव्य रूप सरचार जगत का विध्वंश कर देंगें देवी के क्रोध के सामने देव, दानव, मानव, नाग, गन्धर्व, किन्नर एवं स्वयं त्रिवेद भी विवश हो जायेंगें । देवी को शांत करने के उद्देश्य से सदाशिव शिव ने देवी सती को पुकारा और पूछा देवी यह रूप कौन है इनकी पूजा करने से क्या फल मिलते है आप शांत हो जाए और मुझसे इन रूपों का विवरण कहे । शिव से ऐसे वचन सुनकर समस्त 10 महाविद्याये देवी पार्वती में समाकर एक हो गईं और देवी ने शिव से कहा की यह सभी मेरे ही रूप है इन स्वरुप की विधिवत पूजा - अर्चना करने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति सहजता से हो जाती है । फिर भगवान् शिव ने उन्हें राजा दक्ष के यज्ञ में कुछ शिवगणों के साथ भेज दिया जिसपर वहा उनका बहुत अपमान हुआ अंत में देवी सती ने हवनकुंड में जलकर आत्मदाह कर लिया, इसकी सुचना भगवान् शिव को मिलते है उन्होंने क्रोध में आकर वीरभद्र को आदेश किया की दक्ष के यज्ञ का विध्वंश कर दक्ष का वध कर दे । भगवान शिव के आदेश अनुसार वीरभद्र ने सम्पूर्ण यज्ञ का विध्वंश कर दिया और अंत में दक्ष का अंत कर दिया ।

दस महाविद्याओ के स्वरुप, मंत्र और पूजा के लाभ

महाविद्या काली: - प्रथम महाविद्या और माता का जाग्रत स्वरुप है काली । माता ने दानवो के वध हेतु यह रूप धरा था, यह रूप अत्यंत भयावह, मुण्डमाल धारण किये हुए है माँ के हाथो में खडग और खप्पर है चण्ड मुण्ड व रक्तबीज का वध करने वाली माँ चामुण्डा का यह रूप भक्तो को निर्भय बनाता है माँ के क्रोध को शांत करने के लिए स्वयं शिव को इनके चरणों के आगे लेटना पड़ा था । गुजरात का पावागढ़ मंदिर माँ का जागृत शक्तिपीठ कहलाता है साथ ही कोलकाता में दक्षिणेश्वर काली और मध्यप्रदेश के उज्जैन में गढ़कालिका के शक्तिपीठो की विशेष मान्यता है ।

महाविद्या काली का रूप (Mahavidya Kali Ka Roop)

वर्ण: काला
केश: खुले हुए व अस्त-व्यस्त
वस्त्र: नग्न अवस्था
नेत्र: तीन
हाथ: चार
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: खड्ग, राक्षस की खोपड़ी, अभय मुद्रा, वर मुद्रा
मुख के भाव: अत्यधिक क्रोधित व फुंफकार मारती हुई

अन्य विशेषता: गले व कमर में राक्षसों की मुंडियों की माला, जीभ अत्यधिक लंबी व रक्त से भरी हुई ।

महाविद्या काली मंत्र (Mahavidya kali ke mantra)

ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके स्वाहा

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिका क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

महाविद्या काली पूजा के फायदे (Mahavidya Kali Puja Ke Fayde)

  • शत्रुओं व दुष्टों का नाश होना
  • स्वयं में परिवर्तन आना
  • मन से बुरी प्रवत्तियों का निकलना
  • अभय का प्राप्त होना
  • समय की महत्ता होना इत्यादि ।

तारा महाविद्या: - नीलवर्ण माता तारा बाघ की खाल पहने हुए है इनकी जीभ बाहर निकली हुयी है । माँ का यह स्वरुप भी दुष्टों के संहार के लिए प्रकट हुआ था इसलिए इन्हें भी माँ काली के समान ही माना गया है । प. बंगाल के वीरभूमि जिले में जहा माता सती के नेत्र गिरे थे वही नयनतारा (तारापीठ) है । बोद्ध धर्म में भी माता तारा की पूजा होती है । माता तारा को भगवान् शिव की माता की उपाधि भी प्राप्त है पौराणिक कथाओं के अनुसार समुन्द्र मंथन के समय जब समुन्द्र से हलाहल विष की निकला तब भगवान शिव ने विषपान किया और विष के प्रभाव से सदाशिव को मूर्छा का आभास होने लगा तब माँ पार्वती ने तारा रूप धरकर उन्हें स्तनपान करवाया जिससे शिवजी पर विष का प्रभाव कम हुआ ।

महाविद्या तारा का रूप (Mahavidya Tara Ka Roop)

वर्ण: नीला
केश: खुले हुए व अस्त-व्यस्त
वस्त्र: बाघ की खाल
नेत्र: तीन
हाथ: चार
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: खड्ग, तलवार, कमल फूल व कैंची
मुख के भाव: आश्चर्यचकित व खुला हुआ
अन्य विशेषता: गले में सर्प व राक्षस नरमुंडों की माला।

महाविद्या तारा के मंत्र (Mahavidya Tara ke Mantra)

ऊँ ह्नीं स्त्रीं हुम फट

महाविद्या तारा पूजा के लाभ (Mahavidya Tara Puja Ke Labh)

  • मातृत्व भाव का जागृत होना
  • संकटों का दूर होना
  • आर्थिक क्षेत्र में उन्नति
  • मोक्ष प्राप्ति इत्यादि ।

महाविद्या त्रिपुर सुंदरी:- तीसरी महाविद्या देवी त्रिपुर सुंदरी को माता षोडशी भी कहते है चतुर्भुज स्वरुप माँ भी सदाशिव शिव के समान पंचमुखी है । 16 कलाओ से संपन्न होने के कारण देवी को षोडशी कहा जाता है त्रिपुरा में जहा माँ के वस्त्र गिरे थे वही पर माँ का शक्तिपीठ स्थित है जगत के विस्तार का कार्य इन्हीं में सम्मिलित होने के कारण ही इन्हें परा भी कहा गया है । माता का यह स्वरुप सौम्य है यह स्वरुप अत्यंत सुन्दर और सुखकारी व मन को लुभाने वाला था इस रूप के दर्शन से भक्त के मन का भय समाप्त होकर मन की शांति प्राप्त होती है  ।

महाविद्या त्रिपुर सुंदरी का रूप (Mahavidya Tripur Sundari Ka Roop)

वर्ण: सुनहरा
केश: खुले हुए व व्यवस्थित
वस्त्र: लाल रंग के
नेत्र: तीन
हाथ: चार
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: पुष्प रुपी पांच बाण, धनुष, अंकुश व फंदा
मुख के भाव: शांत व तेज चमक के साथ
अन्य विशेषता: भगवान शिव की नाभि से निकले कमल के आसन पर विराजमान।

महाविद्या षोडशी के मंत्र (Mahavidya Tripur Sundari ke Mantra)

ॐ ऐ ह्नीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम:

महाविद्या त्रिपुर सुंदरी पूजा के लाभ  (Mahavidya Tripur Sundari Puja Ke Labh)

  • सुंदर रूप की प्राप्ति होना
  • वैवाहिक जीवन का सुखमय रहना
  • जीवनसाथी की तलाश पूरी होना
  • मन का नियंत्रण में रहना
  • आत्मिक शांति का अनुभव करना इत्यादि ।

महाविद्या भुवनेश्वरी: - अखंड ब्रम्हांड की देवी पृथ्वी देवी है माँ भुवनेश्वरी इनके नाम से ही सार्थक है समस्त भुवन की ईश्वर भुवनेश्वरी, महाविद्या भुवनेश्वरी ब्रम्हांड के निर्माण और संचालन के उद्देश्य से हुआ था । सौम्य रूप धरी माँ भुवनेश्वरी शताक्षी तथा शाकुम्भरी देवी के नाम से भी प्रसिद्ध है । पुत्र प्राप्ति के लिए माँ की पूजा आराधना विशेष फलदायी है व सिद्धिया देना माँ भुवनेश्वरी का विशेष गुण है ।

महाविद्या भुवनेश्वरी का रूप (Mahavidya Bhuvaneshwari Ka Roop)

वर्ण: उगते सूर्य के समान तेज व सुनहरा
केश: खुले हुए व व्यवस्थित
वस्त्र: लाल व पीले रंग के
नेत्र: तीन
हाथ: चार
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: अंकुश, फंदा, अभय व वर मुद्रा
मुख के भाव: शांत व अपने भक्तों को देखता हुआ
अन्य विशेषता: इनका तेज सर्वाधिक हैं जिसमें कई सूर्यों की शक्ति निहित हैं।

महाविद्या भुवनेश्वरी के मंत्र (Mahavidya Bhuvaneshwari Ke Mantra)

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं नमः॥

ॐ ह्नीं भुवनेश्वरीयै ह्नीं नम:

महाविद्या भुवनेश्वरी पूजा के लाभ (Mahavidya Bhuvaneshwari Puja Ke Labh)

  • संतान प्राप्ति की कामना का पूरी होना
  • आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति होना
  • शरीर में ऊर्जा का अनुभव करना
  • कार्य करने की शक्ति प्राप्त होना इत्यादि ।

महाविद्या भैरवी:- त्रिनेत्र धारी माँ भैरवी के कई रूप है इन्हें त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रूद्र भैरवी, तथा षटकुटा भैरवी इन नामों से जाना जाता है । भैरवी का प्रमुख रूप उग्र है जो सर्वनाश करने में सक्षम है यह रूप इतना शक्तिशाली है की इनकी भयानक गर्जना से ही शत्रु मृत्यु को प्राप्त हो जाता है दुर्गा सप्तसती में माँ भैरवी को देवी चण्डिका भी कहा गया है इनकी साधना बुरी आत्माओ और शारीरिक कमजोरियों को दूर करने के लिए की जाती है ।

महाविद्या भैरवी का रूप (Mahavidya Bhairavi Ka Roop)

वर्ण: काला
केश: खुले हुए व अस्त-व्यस्त
वस्त्र: लाल व सुनहरे
नेत्र: तीन
हाथ: चार
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: खड्ग, तलवार, राक्षस की खोपड़ी व अभय मुद्रा
मुख के भाव: क्रोधित
अन्य विशेषता: राक्षसों की खोपड़ियों के आसन पर विराजमान हैं, जीभ लंबी, रक्तरंजित व बाहर निकली हुई हैं।

महाविद्या भैरवी मंत्र (Mahavidya Bhairavi Mantra)

ॐ ह्रीं भैरवी कलौं ह्रीं स्वाहा॥

महाविद्या भैरवी पूजा के लाभ (Mahavidya Bhairavi Puja Ke Labh)

  • बुरी आत्माओं, प्रवत्तियों व शक्तियों के प्रभाव से मुक्ति मिलना
  • अभय का मिलना व डर का समाप्त होना
  • वैवाहिक व प्रेम जीवन का सुखमय रहना
  • शत्रुओं से मुक्ति इत्यादि।

महाविद्या छिन्नमस्ता:- प्रचण्ड चण्डिका कहलाई जाने वाली देवी छिन्नमस्ता के हाथ में इनका ही कटा हुआ मस्तक है और दुसरे हाथ में कटार है । इनकी उत्पत्ति का प्रयोजन स्पष्ट नहीं है कई पुराणों में इनकी उत्पत्ति को लेकर अलग अलग उल्लेख मिलते है इस से यह स्पष्ट है देवी के इस रूप की उत्पत्ति किसी अति विशेष प्रयोजन से हुयी थी । इनकी साधना विधि भी तांत्रिको, योग्य साधक और सबकुछ त्याग कर भक्ति में समर्पित कुछ ही महानुभावो तक सिमित है इनका स्वभाव अत्यंत क्रूर है इनकी उपासना व साधना आम जन के लिए खतरनाक साबित हो सकती है देवी की उर्जा सहन न कर पाने व इनकें रूप की कल्पना मात्र से जातक भयभीत हो जाता है । झारखंड की राजधानी रांची में इनका मंदिर स्थित है ।

महाविद्या छिन्नमस्ता का रूप (Mahavidya Chinnmasta Ka Roop)
वर्ण: गुड़हल के समान लाल
केश: खुले हुए
वस्त्र: नग्न, केवल आभूषण पहने हुए
नेत्र: तीन
हाथ: दो
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: खड्ग व अपना कटा हुआ सिर
मुख के भाव: अपना ही रक्त पीते हुए
अन्य विशेषता: धड़ में से तीन रक्त की धाराएँ निकल रही हैं जिसमें से दो रक्त की धाराएँ पास में खड़ी सेविकाएँ पी रही हैं। मैथुन करते हुए जोड़े के ऊपर खड़ी हैं। गले में नरमुंडों की माला पहने हुए हैं।

महाविद्या छिन्नमस्ता मंत्र (Mahavidya Chinnmasta Mantra)

श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा 

श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा॥

महाविद्या छिन्नमस्ता पूजा के लाभ (Mahavidya Chinnmasta Puja Ke Labh)

  • शत्रुओं का समूल नाश 
  • भय का दूर होना
  • विपत्तियों का समाप्त होना इत्यादि।

महाविद्या धूमावती:- यह नकारात्मक गुणों का अवतार है लेकिन वर्ष के एक विशेष समय विशेष प्रयोजन से इनके इस रूप की पूजा की जाती है, माँ धूमावती विधवा रूप में है । पुराणो की एक कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती को अत्यतं तीव्र भूख लगी थी वे भगवान् शंकर के पास जाकर भोजन की मांग करती है लेकिन शिव समाधी में लीन थे । माँ पार्वती के बार बार निवेदन के बाद भी शंकर जी का ध्यान नहीं टूटा तब भूख से व्याकुल देवी पार्वती ने श्वास खीचकर शिवजी को ही निगल लिया । भगवान् शिव के कंठ में विष होने के कारण माँ के शरीर से धुआं निकालने लगता है उनका शरीर शृंगार विहीन और विकृत हो जाता है और माँ पार्वती की भूख शांत हो जाती है तत्पश्चात् भगवान शिव माया के द्वारा मां पार्वती के शरीर से बाहर आते हैं और पार्वती के धूम से व्याप्त स्वरूप को देख कर कहते हैं अब से आप इस वेश में भी पूजे जाएंगे। इसी कारण मां पार्वती का नाम देवी धूमावती पड़ा। माँ के इस रूप को सुतरा भी कहा जाता है अर्थात सुखपूर्वक तारने वाली और यह उग्र रूप है ।

महाविद्या धूमावती का रूप (Mahavidya Dhumavati Ka Roop)

वर्ण: श्वेत
केश: खुले, मैले व अस्त-व्यस्त
वस्त्र: श्वेत
नेत्र: दो
हाथ: दो
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: टोकरी व अभय मुद्रा
मुख के भाव: बेचैन, व्याकुल, दुखी, संशय, थकान
अन्य विशेषता: माँ का शरीर अत्यंत बूढ़ा व झुर्रियों वाला हैं तथा कपड़े भी एकदम मैले व कटे-फटे हुए हैं। बिना घोड़े के रथ पर विराजमान हैं जिसके शीर्ष पर कौवां बैठा हैं।

महाविद्या धूमावती मंत्र (Mahavidya Dhumavati Mantra)

ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा॥

महाविद्या धूमावती पूजा के लाभ (Mahavidya Dhumavati Puja Ke Labh)

  • संकटों का हरण होना
  • नकारात्मक गुणों का समाप्त होना
  • किसी प्रकार की कमी का दूर होना
  • गरीबी दूर करने हेतु 
  • भूख का शांत होना इत्यादि ।

महाविद्या बगलामुखी:- देवी बगलामुखी को पीताम्बरा भी कहा जाता है इनके वस्त्र पीले है व इनके मुख पर स्वर्ण समान तेज है माँ का शृंगार भी स्वर्ण आभूषणों व पित पुष्पों से है माँ को पिला रंग प्रिय है । तंत्र की देवी कहलाने वाली में बगलामुखी का स्वाभाव उग्र है इसलिए इनकी साधना बिना गुरु के निर्देश नहीं करनी चाहिएं । शत्रु नाश के लिए स्वयं भगवान् श्री कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने माता बगलामुखी की ही आराधना की थी जिसके फलस्वरूप उन्हें युद्ध में विजय श्री का आशीर्वाद मिला था । माता की उत्पत्ति की कथा कुछ ऐसी है की एक बार सौराष्ट्र में भयंकार तूफ़ान से तबाही मची हुयी थी, तब तूफ़ान को शांत करने के लिए देवताओं ने श्री हरी विष्णु से प्रार्थना की थी और देवताओं की प्रार्थना पर श्री विष्णु ने देवी को प्रसन्न करने हेतु तप किया जिससें माँ ने अपने बगलामुखी रूप को प्रकट किया और स्तंभन शक्ति से तूफ़ान को शांत कर दिया इसलिए इनको स्तंभन शक्ति की देवी भी कहा जाता है ।

महाविद्या बगलामुखी का रूप (Mahavidya Baglamukhi Ka Roop)

वर्ण: सुनहरा
केश: खुले हुए व व्यस्त
वस्त्र: पीले
नेत्र: तीन
हाथ: दो
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: बेलन के आकार का शस्त्र व राक्षस की जिव्हा
मुख के भाव: डराने वाले
अन्य विशेषता: स्वर्ण सिंहासन के ऊपर एक राक्षस का मृत शरीर हैं और उसके ऊपर माँ बैठी हैं। राक्षस को नियंत्रण में करने का व डराने का प्रयास कर रही हैं।

महाविद्या बगलामुखी मंत्र (Mahavidya Baglamukhi Mantra)

ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै ह्लीं ॐ नमः॥

ह्मीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलम बुद्धिं विनाशय ह्मीं ॐ स्वाहा (2)

महाविद्या बगलामुखी पूजा के लाभ (Mahavidya Baglamukhi Puja Ke Labh)

  • शत्रुओं का समूल नाश व उन पर लगाम लगाना
  • दुष्टों को अपंग बनाना
  • विपत्ति का हल करना
  • आगे का मार्ग प्रशस्त करना इत्यादि।

महाविद्या मातंगी:- वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप है महाविद्या मातंगी, इनकी उपासना से जातक को वाणी, ज्ञान, विज्ञान, सम्मोहन, वशीकरण एवं मोहनी विद्या की प्राप्ति होती है। एक बार जब भगवान शिव व माता पार्वती विष्णु व लक्ष्मी का दिया हुआ भोजन कर रहे थे तब उनके हाथ से भोजन के कुछ अंश नीचे गिर गए। उसी झूठन में से माँ मातंगी का प्राकट्य हुआ। इसी कारण मातारानी के इस रूप को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता हैं। माँ का यह रूप इंद्रजाल विद्या व जादुई शक्तियों में पारंगत है साथ ही सिद्धि संगीत तथा अन्य ललित कलाओ में निपुण है ना ना प्रकार की तंत्र विद्याओ से संपन्न यह देवी का यह रूप । शास्त्रों में शिव को मतंग कहा गया है और उनकी की आदिशक्ति है देवी मातंगी ।

महाविद्या मातंगी का रूप (Mahavidya Matangi Ka Roop)

वर्ण: गहरा हरा
केश: खुले हुए व व्यवस्थित
वस्त्र: लाल
नेत्र: तीन
हाथ: चार
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: तलवार, फंदा, अंकुश व अभय मुद्रा
मुख के भाव: शांत व आनंदमयी
अन्य विशेषता: माँ सरस्वती के समान सामने वीणा रखी हुई हैं जिस कारण इन्हें तांत्रिक सरस्वती भी कहा जाता हैं।

महाविद्या मातंगी मंत्र (Mahavidya Matangi Mantra)

ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:

महाविद्या मातंगी पूजा के लाभ (Mahavidya Matangi Puja Ke Labh)

  • बुद्धि व विद्या का विकास होना
  • कला व संगीत के क्षेत्र में उन्नति
  • वाणी पर नियंत्रण व मधुर बनना
  • जादू टोना या माया के प्रभाव से मुक्ति इत्यादि।

महाविद्या कमला:- धनसंपदा प्रदान करने वाली देवी लक्ष्मी का तांत्रिक रूप है माँ कमला के इस रूप को सर्वलोकमहेश्वरी भी कहा गया है । समुंद मंथन से उत्पन्न हुईं देवी कमला समस्त प्रकार की धन संपदा, वैभव, और समृद्धि प्रदान करने वाली देवी है । पवित्रता, निर्मलता और स्वच्छता इन्हें अति प्रिय है । अंधकार रहित स्थानों पर ही माँ कमला निवास करती है ।

महाविद्या कमला का रूप (Mahavidya Kamla Ka Roop)

वर्ण: सुनहरा व तेज
केश: खुले हुए व व्यवस्थित
वस्त्र: लाल
नेत्र: तीन
हाथ: चार
अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: दो कमल पुष्प, अभय व वरदान मुद्रा
मुख के भाव: शांत, सुखकारी व आनंदमयी
अन्य विशेषता: कमल पुष्प से भरे हुए सरोवर में, आसपास चार हाथी जल से अभिषेक करते हुए।

महाविद्या कमला मंत्र (Mahavidya Kamla Mantra)

हसौ: जगत प्रसुत्तयै स्वाहा:

ॐ ह्रीं अष्ट महालक्ष्म्यै नमः॥

महाविद्या कमला पूजा के लाभ (Mahavidya Kamla Puja Ke Labh)

  • आर्थिक स्थिति में सुधार होना
  • व्यापार व नौकरी में उन्नति का होना
  • सभी इच्छाओं की पूर्ति होना
  • सुख व वैभव में वृद्धि होना इत्यादि।

इस आर्टिकल में हमने विस्तार से दस महाविद्याओ की चर्चा की है और समस्त महाविद्या के विषय में आपको आवश्यक जानकारी देने का प्रयास किया है । हमने इन विषयो पर चर्चा की और इन सवालों के जवाव देने का प्रयत्न किया है । 1)  10 महाविद्या की उत्पत्ति कैसे हुई, 2) 10 महाविद्या के नाम, मंत्र और महत्व क्या है । अगर आपको यह जानकारी अच्छी और उपयोगी लगी हो तो इसे अपने मित्रो और प्रियजनों के साथ अवश्य शेयर करे।


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