दस महाविद्या: नवम विद्या महाविद्या मातंगी, पढ़े क्यों इन्हें जूठे भोजन का भोग लगाया जाता है
शास्त्रों में माँ
पार्वती (सती) के दस रूपों को दस महाविद्या कहा गया है इनके वर्णन इस प्रकार है काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर
भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी व कमला। इन देवियों को दस महाविद्या कहा जाता हैं। प्रत्येक महाविद्या
का अपना अलग महत्त्व है व अलग पूजा विधि है और अलग फल है इनमे देवी के कुछ रूप
उग्र स्वाभाव के है कुछ सौम्य और कुछ सौम्य उग्र । देवी के उग्र रूप की साधना व
उपासना बिना गुरु के दिशा निर्देशों के ना करे ।
महाविद्या मातंगी:- वैदिक सरस्वती का तांत्रिक रूप है महाविद्या मातंगी, इनकी उपासना से जातक को वाणी, ज्ञान, विज्ञान, सम्मोहन, वशीकरण एवं मोहनी विद्या की प्राप्ति होती है। एक बार जब भगवान शिव व माता पार्वती विष्णु व लक्ष्मी का दिया हुआ भोजन कर रहे थे तब उनके हाथ से भोजन के कुछ अंश नीचे गिर गए। उसी झूठन में से माँ मातंगी का प्राकट्य हुआ। इसी कारण मातारानी के इस रूप को हमेशा झूठन का भोग लगाया जाता हैं। माँ का यह रूप इंद्रजाल विद्या व जादुई शक्तियों में पारंगत है साथ ही सिद्धि संगीत तथा अन्य ललित कलाओ में निपुण है ना ना प्रकार की तंत्र विद्याओ से संपन्न यह देवी का यह रूप । शास्त्रों में शिव को मतंग कहा गया है और उनकी की आदिशक्ति है देवी मातंगी ।
महाविद्या मातंगी का रूप (Mahavidya Matangi Ka Roop)
- वर्ण: गहरा हरा
- केश: खुले हुए व व्यवस्थित
- वस्त्र: लाल
- नेत्र: तीन
- हाथ: चार
- अस्त्र-शस्त्र व हाथों की मुद्रा: तलवार, फंदा, अंकुश व अभय मुद्रा
- मुख के भाव: शांत व आनंदमयी
- अन्य विशेषता: माँ सरस्वती के समान सामने वीणा रखी हुई हैं जिस कारण इन्हें तांत्रिक सरस्वती भी कहा जाता हैं।
महाविद्या मातंगी मंत्र (Mahavidya Matangi Mantra)
ऊँ ह्नीं ऐ भगवती मतंगेश्वरी श्रीं स्वाहा:
महाविद्या मातंगी पूजा के लाभ (Mahavidya Matangi Puja Ke Labh)
- बुद्धि व विद्या का विकास होना
- कला व संगीत के क्षेत्र में उन्नति
- वाणी पर नियंत्रण व मधुर बनना
- जादू टोना या माया के प्रभाव से मुक्ति इत्यादि ।
माँ मातंगी स्त्रोत्र को सही उच्चारण के साथ जपने से माँ प्रसन्न होती है । नियमित रूप से माँ मातंगी के स्त्रोत्र का जाप करने से माँ की कृपा बनी रहती है और सब मनोरथ सिद्ध हो जाते है । साथ वाणी का वरदान प्राप्त होता है ।
माँ मातंगी स्तोत्र
मातङ्गीं मधुपानमत्तनयनां मातङ्ग सञ्चारिणीं
कुम्भीकुम्भविवृत्तपीवरकुचां कुम्भादिपात्राञ्चिताम् ।
ध्यायेऽहं मधुमारणैकसहजां ध्यातुस्सुपुत्रप्रदां
शर्वाणीं सुरसिद्धसाध्यवनिता संसेविता पादुकाम् ॥ १॥
मातङ्गी महिषादिराक्षसकृतध्वान्तैकदीपो मणिः
मन्वादिस्तुत मन्त्रराजविलसत्सद्भक्त चिन्तामणिः ।
श्रीमत्कौलिकदानहास्यरचना चातुर्य राकामणिः
देवित्वं हृदये वसाद्यमहिमे मद्भाग्य रक्षामणिः ॥ २॥
जयदेवि विशालाक्षि जय सर्वेश्वरि जय ।
जयाञ्जनगिरिप्रख्ये महादेव प्रियङ्करि ॥ ३॥
महाविश्वेश दयिते जय ब्रह्मादि पूजिते ।
पुष्पाञ्जलिं प्रदास्यामि गृहाण कुलनायिके ॥ ४॥
जयमातर्महाकृष्णे जय नीलोत्पलप्रभे ।
मनोहारि नमस्तेऽस्तु नमस्तुभ्यं वशङ्करि ॥ ५॥
जय सौभाग्यदे नॄणां लोकमोहिनि ते नमः ।
सर्वैश्वर्यप्रदे पुंसां सर्वविद्याप्रदे नमः ॥ ६॥
सर्वापदां नाशकरीं सर्वदारिद्रयनाशिनीम् ।
नमो मातङ्गतनये नमश्चाण्डालि कामदे ॥ ७॥
नीलाम्बरे नमस्तुभ्यं नीलालकसमन्विते ।
नमस्तुभ्यं महावाणि महालक्ष्मि नमोस्तुते ॥ ८॥
महामातङ्गि पादाब्जं तव नित्यं नमाम्यहम् ।
एतदुक्तं महादेव्या मातङ्गयाः स्तोत्रमुत्तमम् ॥ ९॥
सर्वकामप्रदं नित्यं यः पठेन्मानवोत्तमः ।
विमुक्तस्सकलैः पापैः समग्रं पुण्यमश्नुते ॥ १०॥
राजानो दासतां यान्ति नार्यो दासीत्वमाप्नुयुः ।
दासीभूतं जगत्सर्वं शीघ्रं तस्य भवेद् ध्रुवम् ॥ ११॥
महाकवीभवेद्वाग्भिः साक्षाद् वागीश्वरो भवेत् ।
अचलां श्रियमाप्नोति अणिमाद्यष्टकं लभेत् ॥ १२॥
लभेन्मनोरथान् सर्वान् त्रैलोक्ये नापि दुर्लभान् ।
अन्ते शिवत्वमाप्नोति नात्र कार्या विचारणा ॥ १३॥
श्रीराजमातङगी पादुकार्पणमस्तु ।
। इति श्रीमातङ्गीस्तोत्रं सपूर्णम् ।