सिद्ध कुंजिका स्तोत्र समस्त कष्टों से मुक्ति दिलाएगा
कहा जाता है की श्री सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के बिना दुर्गा सप्तसती का जाप अधुरा रहता है। सिद्ध कुंजिका के पाठ से बड़ी से बड़ी विपदा भी दूर हो जाती है। सिद्ध कुंजिका स्त्रोत को आप प्रतिदिन 1 बार अवश्य पढ़े। लेकिन समस्या विकट हो और परेशानी ज्यादा हो या फिर कोई मनोकामना हो तो आप प्रतिदिन 9 बार पाठ करे जल्दी ही हल मिलेगा। आईये बिना विलम्ब के शुरू करते है श्री सिद्ध कुंजिका स्त्रोत्र ।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ विधि और प्रयोग
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ ऐसे ही नहीं किया जाता हैं। इस स्तोत्र को विधि-विधान पूर्वक करने से ही इसका शुभ फल मिलता हैं। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ करने की सम्पूर्ण विधि हमने मंत्र सहित नीचे दी हैं।
- सबसे पहले प्रात:काल शौच स्नान आदि करके निवृत हो जाए।
- आप इस पाठ को नवरात्री या किसी शुभ दिन पर कर सकते हैं। जिस दिन पाठ करे उस दिन माँ दुर्गा की प्रतिमा के आगे घी का दीपक जलाए।
- अब माँ दुर्गा को धुप आदि जलाए और उनका श्रृंगार करे। अब माँ दुर्गा को प्रसाद का भोग लगाए।
- माँ दुर्गा को पुष्प अर्पित करे तथा उनसे प्रार्थना करे. उसके पश्चात आसन बिछाकर उनका ध्यान करे।
- यह सभी प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करे।
प्रार्थना करने के दौरान आपको एक मंत्र जाप करना है. जो हमने नीचे दिया हैं।
॥ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् ॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेनस्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
॥ अथ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥ इति मन्त्रः ॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥2॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥3॥
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥4॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥5॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥6॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥7॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥8॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
॥ ॐ तत्सत् ॥
श्री सिद्ध कुंजिका स्त्रोत्र नवरात्री में किसी भी दिन से जाप शुरू कर सकते है।