रिंग की रानी: हमीदा बानो - भारत की पहली महिला पहलवान
हमीदा बानो का नाम भारतीय कुश्ती के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा है। वह भारत की पहली महिला पहलवान मानी जाती हैं जिन्होंने 1940 और 50 के दशक में पुरुष पहलवानों को अखाड़े में धूल चटा दी थी। उनकी ताकत, निडरता और खेल के प्रति जुनून ने उन्हें अपने समय की सबसे दमदार पहलवानों में से एक बना दिया।
मिर्जापुर की धाकड़ बेटी
हमीदा बानो का जन्म उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में हुआ था। उनके बचपन और शुरुआती जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन ये ज्ञात है कि वह बचपन से ही शारीरिक रूप से मजबूत थीं। माना जाता है कि उनका बचपन काफी कठिन रहा होगा, जिसने उनकी शारीरिक क्षमता को निखारने में मदद की।
कुश्ती के प्रति उनका लगाव कब और कैसे जगा, यह भी स्पष्ट नहीं है। लेकिन यह तय है कि उन्होंने कम उम्र से ही पहलवानी की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी। उस समय महिलाओं का पहलवानी करना एक तरह से विद्रोह माना जाता था, पर हमीदा सामाजिक बंधनों से नहीं डरीं। उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारना जारी रखा और जल्द ही उनकी ताकत के चर्चे दूर-दूर तक फैलने लगे।
अजेय पहलवान: पुरुषों को दी खुली चुनौती
हमीदा बानो सिर्फ शक्तिशाली ही नहीं, बल्कि बेहद निडर भी थीं। उन्होंने पुरुष पहलवानों को खुली चुनौती देना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि जो उन्हें कुश्ती में हरा देगा, उससे वह शादी कर लेंगी। यह चुनौती उस समय के समाज में एक तरह से क्रांति का बिगुल बजाना था।
उनकी चुनौती को स्वीकार करने वाले तो कई पहलवान सामने आए, लेकिन कोई भी उन्हें हरा नहीं सका। यह किस्सा काफी मशहूर है कि उस समय के प्रसिद्ध पहलवान "छोटे गामा" ने भी हमीदा बानो के साथ कुश्ती करने से इनकार कर दिया था।
हमीदा बानो की लगातार जीत ने उन्हें अजेय पहलवान बना दिया। उनके मुकाबले देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। अखबारों में उनकी वीरता के किस्से छपते थे। वह उस समय की खेल हस्ती बन गई थीं।
विदेशी धरती पर भी लहराया दम
हमीदा बानो की ख्याति सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं रही। उनकी प्रतिभा की गूंज विदेशों तक भी पहुंची। उन्हें विदेशों में भी कुश्ती के प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने विदेशी पहलवानों को भी अपने दमदार खेल से चकित कर दिया।
उन्होंने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान जैसे देशों में जाकर भी कुश्ती के मुकाबले जीते। विदेशी धरती पर भी उन्होंने भारत का नाम रोशन किया।
एक सशक्त महिला की प्रेरणा
हमीदा बानो सिर्फ एक पहलवान ही नहीं थीं, बल्कि वह अपने समय की एक सशक्त महिला भी थीं। उन्होंने उस दौर में समाजिक रूढ़ियों को तोड़कर एक अलग रास्ता बनाया। उन्होंने साबित किया कि महिलाएं भी पुरुषों से कम नहीं हैं और किसी भी क्षेत्र में अपना नाम कमा सकती हैं।
उनकी कहानी महिला सशक्तिकरण की एक प्रेरणा है। वह उन युवाओं के लिए भी आदर्श हैं जो अपने सपनों को पाने के लिए चुनौतियों का सामना करने से नहीं घबराते।
हमीदा बानो को श्रद्धांजलि
हमीदा बानो का जीवनकाल स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है, लेकिन माना जाता है कि उनका निधन 20वीं सदी के उत्तरार्ध में हुआ था। भले ही वह आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन आज भी उनकी वीरता हमारे बीच जीवित है।
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