शिव के 5 दिव्य रूप, उनके नाम, गुण और विशेषताये हिंदी में
महादेव के कई रूप है जिनके नाम भी असंख्य है परन्तु हम रूप और अवतार ने फर्क को नहीं समझ पाते है शिव के 5 मुख है भगवान भोलेनाथ के 5 मुखो का वर्णन वेदों में मिलता है भगवान शिव के यह स्वरुप कोई अवतार नहीं बल्कि स्यवं शिव है आप इन्हें शिव के 5 विशेष गुण कह सकते है महादेव के यह दिव्य रूप उनके 5 मुखो के रूप में सदैव साथ रहते है और उन्हें हम पंचमुखी महादेव भी कहते है।
सद्योजात
महादेव के प्रथम रूप है सद्योजात, शिव का यह स्वरूप प्रबल इच्छा शक्ति से जुड़ा है। अपने इस स्वरूप में महादेव दुखी और प्रसन्न, दोनों ही मुद्राओं में दिखाई देते हैं। शिव के इस स्वरूप में उनके भीतर के क्रोध और ज्वाला को बाहर निकालने की क्षमता है। पांच मुखों वाले शिवलिंग में अपने इस स्वरूप में शिव पश्चिम दिशा की ओर देखते हैं। सफेद रंग में शिव अपने भीतरी अहम और क्रोध की पुष्टि करते हैं। कहा जाता हैं की जब ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना करने जा रहे थे तब शिव ने उन्हें अपना आशीर्वाद इसी रूप में प्रदान किया था। शिव के इस स्वरूप का संबंध मणिपुर चक्र से है।
वामदेव
शिव का अगला स्वरूप है वामदेव, जिसका संबंध संरक्षण से है। अपने इस स्वरूप में शिव, कवि भी हैं, पालनकर्ता भी हैं और दयालु भी हैं। शिवलिंग के दाहिनी ओर पर मौजूद शिव का यह स्वरूप उत्तरी दिशा की ओर देखता है। अपने इस स्वरूप में शिव का रंग लाल है। उनका यह स्वरूप, माया, शक्ति और सुंदरता के साथ जुड़ा है। बहुत से पौराणिक दस्तावेजों में यह बात उल्लिखित है कि वामदेव के भीतर दुखों और पीड़ाओं को दूर करने की भी ताकत है। शिव के संरक्षक रूप से संबंधित वामदेव, वायु तत्त्व और अनाहत चक्र से जुड़े हैं।
अघोर
तीसरे स्वरूप में ज्ञान शक्ति और बुद्धि का प्रतिक है यह मुख दक्षिण की ओर है। शिव का यह स्वरूप प्राणमाया कोश से जुड़ा है। धूम्र वर्ण में शिव रुद्र की ताकत को दर्शाते हैं। जल तत्व से संबंधित शिव अपने इस स्वरूप के द्वारा मनुष्य के भीतर छिपे अहंकार में संतुलन और स्वाधिष्ठान चक्र के प्रतिनिधि हैं।
तत्त्पुरुष
पूर्वी दिशा की ओर मुख कर के शिव परमात्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव का यह स्वरूप आनंद शक्ति या हर्ष को दर्शाने के साथ-साथ आत्मा की संरचना का प्रदर्शन करता है। पीले रंग के शिव स्वरूप का संबंध पृथ्वी तत्त्व से है। शिव का संबंध मूलाधार चक्र से है इसलिए अगर आपको किसी चीज पर अपने मस्तिष्क को स्थिर करने में परेशानी होती है, आपकी एकाग्रता कम होती जा रही है तो आपको शिव के इस स्वरूप को अपने सामने रखकर उस पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
ईशान
अपने इस स्वरूप में शिव ऊपर की ओर देख रहे हैं। ब्रह्माण्ड की चेतना को जाग्रत करते शिव अपने इस स्वरूप में आकाश की ओर देखते प्रतीत होते हैं। शिव के इस स्वरूप का अर्थ सदा शिव है, जो ब्रह्माण्ड के हर छोटे से छोटे कण, हर ओर और हर कृति में समाहित है। आनंदमय कोश से संबंधित शिव विशुद्ध चक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।